हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मौलाना सैयद कल्बे जवाद नकवी ने मुहर्रम के महीने की पहली मजलिस को लखनऊ/इमाम बड़ा गुफरान माआब में अज़ादारी के महत्व और महानता पर संबोधित किया। मौलाना ने मजलिस की शुरुआत में यह भी बताया कि उनके पूर्वज मौलाना कल्बे हुसैन साहब तब सारा से अब तक 100 साल हो गए हैं।
मौलाना ने कहा कि चालीस साल तक मेरे दादा मौलाना कल्बे हुसैन साहब ताबा सराह हुसैनिया गुफ़रान माआब में मजलिस पढ़ते रहे। तेईस साल तक मेरे पिता स्वर्गीय मौलाना कल्बे आबिद साहब ने इस मंच पर बात की और यह सैतीसवा साल है कि अब मै मजलिस पढ़ रहा हूं। इस साल हुसैनिया गफरान मब के मुहर्रम की 10 तारीख को 100 साल पूरे हो गए हैं। मौलाना ने आगे कहा कि याद की मौजूदा शैली इसी अज़ाखाने से शुरू हुई जिसका इतिहास संकलित किया गया है।
मौलाना ने इमामों की हदीसों के आलोक में फरशे अज़ा के महत्व को स्पष्ट किया और कहा कि मजलिस अज़ा के चौदह नामों का उल्लेख इमाम जाफर सादिक (अ.स.) ने किया था, जो फरश अज़ा की महानता को दर्शाता है। इस मजलिस हुसैन (अ.स.) को फरिश्तों के नुज़ूल का स्थान और दुरूद और अरफात का क्षेत्र बताया गया है। मजलिस के अंत में मौलाना ने कूफा में इमाम हुसैन (अ.स.) के सफ़ीर मुसलिम बिन अक़ील (अ.स.) की शहादत का जिक्र किया।